रुपया 18 पैसे की गिरावट के साथ 81.85 प्रति डॉलर पर बंद
अमेरिकी मुद्रा की तुलना में बुधवार को रुपया 18 पैसे की गिरावट के साथ 81.85 (अस्थायी) प्रति डॉलर पर बंद हुआ. इससे पहले शुरुआती कारोबार में बुधवार को अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपया 14 पैसे गिरकर 81.81 रुपये प्रति डॉलर पर आ गया था. मंगलवार को डॉलर के मुकाबले रुपया 12 पैसे की मजबूती के साथ 81.67 पर बंद हुआ था.
मुंबई : कच्चे तेल कीमतों में सुधार आने और आयातकों की डॉलर मांग के कारण अंतरबैंक विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार में बुधवार को रुपया 18 पैसे की गिरावट के साथ 81.85 (अस्थायी) प्रति डॉलर पर बंद हुआ. बाजार सूत्रों ने कहा कि विदेशी पूंजी की सतत निकासी और चीन में कोविड-19 के बढ़ते मामले से निवेशकों की धारणा प्रभावित हुई.
अंतरबैंक विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार में रुपया 81.81 पर खुला. कारोबार के दौरान रुपया 81.74 के दिन के उच्चस्तर और 81.87 के निचले स्तर को छूने के बाद अंत में अमेरिकी मुद्रा के मुकाबले 18 पैसे की गिरावट के साथ 81.85 प्रति डॉलर पर बंद हुआ. रुपया मंगलवार को 81.67 प्रति डॉलर पर बंद हुआ था.
इस बीच, दुनिया की छह प्रमुख मुद्राओं की तुलना में डॉलर की कमजोरी या मजबूती को दर्शाने वाला डॉलर सूचकांक 0.21 प्रतिशत की गिरावट के साथ 106.99 रह गया. वैश्विक तेल मानक ब्रेंट क्रूड वायदा 0.91 प्रतिशत बढ़कर 89.16 डॉलर प्रति बैरल हो गया.
वहीं, बीएसई का 30 शेयरों वाला सेंसेक्स 91.62 अंक की तेजी के साथ अमेरिकी डॉलर सूचकांक वायदा 61,510.58 अंक पर बंद हुआ. शेयर बाजार के आंकड़ों के अनुसार, विदेशी संस्थागत निवेशक (एफआईआई) पूंजी अमेरिकी डॉलर सूचकांक वायदा बाजार में शुद्ध बिकवाल रहे. उन्होंने मंगलवार को 697.83 करोड़ रुपये के शेयर बेचे.
बता दें कि रुपया मंगलवार को अमेरिकी मुद्रा के मुकाबले 12 पैसे की तेजी के साथ 81.67 प्रति डॉलर पर बंद हुआ था. इस बीच छह प्रमुख मुद्राओं के मुकाबले अमेरिकी डॉलर की स्थिति को दर्शाने वाला डॉलर सूचकांक 0.06 प्रतिशत की गिरावट के साथ 107.16 पर पहुंच गया. वैश्विक तेल सूचकांक ब्रेंट क्रूड वायदा 0.08 प्रतिशत गिरकर 88.29 डॉलर प्रति बैरल के भाव पर था. विशेषज्ञों ने बताया कि चीन में कोविड संबंधी सख्त पाबंदियां लगने की आशंका से एशियाई मुद्राएं प्रभावित हुईं. शेयर बाजार के आंकड़ों के अनुसार, विदेशी संस्थागत निवेशकों ने मंगलवार को 697.83 करोड़ रुपये मूल्य के शेयर बेचे. (पीटीआई-भाषा)
अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपया अपने सबसे निचले स्तर पर
विदेशी मुद्रा की लगातार कमी और अमेरिकी डॉलर में तेजी के कारण आज रुपया शुरुआती कारोबार में 6 पैसे टूटकर 83.06 रुपये प्रति डॉलर के निचले स्तर पर आ गया। अंतरबैंक विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार में रुपया डॉलर के मुकाबले 83.05 रुपये पर खुला और फिर गिरकर 83.06 रुपये प्रति डॉलर पर आ गया।
शुरुआती सौदों में रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 83.07 के स्तर तक गया। रुपया पिछले सत्र में, बुधवार को अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 60 पैसे की गिरावट के साथ पहली बार 83 रुपये के स्तर से नीचे चला गया था। इसबीच छह प्रमुख मुद्राओं के मुकाबले अमेरिकी डॉलर की स्थिति को अमेरिकी डॉलर सूचकांक वायदा दर्शाने वाला डॉलर सूचकांक 0.07 प्रतिशत बढ़कर 113.06 पर आ गया।
वैश्विक तेल सूचकांक ब्रेंट क्रूड वायदा 0.17 प्रतिशत गिरकर 92.25 डॉलर प्रति के भाव पर था। शेयर बाजार के अस्थाई आंकड़ों के मुताबिक विदेशी संस्थागत निवेशकों (FII) ने बुधवार को शुद्ध रूप से 453.91 करोड़ रुपये के शेयर बेचे।
Dollar Vs Rupee : शुरुआती कारोबार में अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपया 10 पैसे टूटा
Dollar Vs Rupee : शुरुआती कारोबार में अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपया 10 पैसे टूट गया. इस बीच छह प्रमुख मुद्राओं के मुकाबले अमेरिकी डॉलर की स्थिति को दर्शाने वाला डॉलर सूचकांक 0.23 प्रतिशत गिरकर 108.75 पर आ गया.
Published: September 12, 2022 10:30 AM IST
Dollar Vs Rupee : शेयर बाजारों में सकारात्मक शुरुआत के बावजूद रुपया सोमवार को शुरुआती कारोबार में अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 10 पैसे की गिरावट के साथ 79.67 पर आ गया.
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अंतरबैंक विदेशी अमेरिकी डॉलर सूचकांक वायदा मुद्रा विनिमय बाजार में रुपया डॉलर के मुकाबले 79.66 पर खुला और फिर गिरकर 79.67 पर आ गया. इस तरह रुपया ने पिछले बंद भाव के मुकाबले 10 पैसे की गिरावट दर्ज की. रुपया शुक्रवार को अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 12 पैसे की तेजी के साथ 79.57 पर बंद हुआ था.
इस बीच छह प्रमुख मुद्राओं के मुकाबले अमेरिकी डॉलर की स्थिति को दर्शाने वाला डॉलर सूचकांक 0.23 प्रतिशत गिरकर 108.75 पर आ गया.
वैश्विक तेल मानक ब्रेंट क्रूड वायदा 1.49 प्रतिशत गिरकर 91.46 डॉलर प्रति बैरल के भाव पर था.
शेयर बाजार के अस्थाई आंकड़ों के मुताबिक विदेशी संस्थागत निवेशकों ने शुक्रवार को शुद्ध रूप से 2,132.42 करोड़ रुपये के शेयर खरीदे.
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अमेरिका में कच्चा तेल शून्य डॉलर से भी नीचे! भारत के लिए क्यों है चिंताजनक, क्या है तेल का खेल?
अमेरिका के वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट (WTI) मार्केट में कच्चा तेल मई के वायदा सौदों के लिए सोमवार को गिरते हुए माइनस 37.63 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गया था. दुनियाभर में लॉकडाउन को देखते हुए जिन कारोबारियों ने मई के लिए वायदा सौदे किए हैं वे अब इसे लेने को तैयार नहीं अमेरिकी डॉलर सूचकांक वायदा हैं. कच्चे तेल की यह गिरावट दुनिया सहित भारत की इकोनॉमी के लिए भी कोई अच्छी खबर नहीं है.
दिनेश अग्रहरि
- नई दिल्ली,
- 21 अप्रैल 2020,
- (अपडेटेड 21 अप्रैल 2020, 2:33 PM IST)
- अमेरिकी बाजार में कच्चा तेल शून्य डॉलर प्रति बैरल से भी कम
- भारत के लिए लंदन का ब्रेंट क्रूड ज्यादा मायने रखता है
- कच्चे तेल का टूटना इकोनॉमी के लिए अच्छी खबर नहीं
- इसका भारतीय इकोनॉमी पर भी असर पड़ सकता है
अमेरिकी वायदा बाजार में कच्चा तेल सोमवार को ऐतिहासिक रूप से लुढ़कते हुए अमेरिकी डॉलर सूचकांक वायदा नेगेटिव में चला गया, शून्य से 36 डॉलर नीचे. क्या है इसका मतलब और भारत को इससे क्या फर्क पड़ता है? आइए समझते हैं इस तेल का खेल.
क्या हुआ अमेरिकी बाजार में
सोमवार को अमेरिका के वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट (WTI) मार्केट में कच्चा तेल मई के वायदा सौदों के लिए गिरते हुए माइनस 37.63 अमेरिकी डॉलर सूचकांक वायदा डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गया था. सबसे पहले यह समझ लें कि इसका मतलब क्या है. यह रेट मौजूदा यानी तत्काल के हाजिर बाजार के लिए नहीं है. यह वायदा बाजार के लिए है.
असल में अमेरिकी डॉलर सूचकांक वायदा दुनियाभर में लॉकडाउन को देखते हुए जिन कारोबारियों ने मई के लिए वायदा सौदे किए हैं वे अब इसे लेने को तैयार नहीं हैं. उनके पास पहले से इतना तेल जमा पड़ा है जिसकी खपत नहीं हो रही है. इसलिए उत्पादक उन्हें अपने पास से रकम देने को तैयार हैं कि आप हमसे खर्च ले लो, लेकिन कच्चा तेल ले जाओ यानी सौदे को पूरा करो. ऐसा कच्चे तेल के इतिहास में पहली बार हुआ अमेरिकी डॉलर सूचकांक वायदा है.
इसके अगले महीने यानी जून के कॉन्ट्रैक्ट के लिए डब्लूटीआई क्रूड की कीमत 22.15 डॉलर प्रति बैरल थी. यानी एक महीने के ही भीतर वायदा सौदे में प्रति बैरल करीब 60 डॉलर का अंतर दिख रहा था.
भारत को क्या पड़ता है फर्क
अब इस बात को समझना जरूरी है कि वैसे अमेरिकी बाजार में कच्चा तेल अगर मुफ्त भी हो जाता है तो पेट्रोलियम कीमतों के लिहाज से भारत को बहुत फर्क क्यों नहीं पड़ता. असल में भारत में जो तेल आता है वह लंदन और खाड़ी देशों का एक मिश्रित पैकेज होता है जिसे इंडियन क्रूड बास्केट कहते हैं. इंडियन क्रूड बास्केट में करीब 80 फीसदी हिस्सा ओपेक देशों का और बाकी लंदन ब्रेंट क्रूड तथा अन्य का होता है. यही नहीं दुनिया के करीब 75 फसदी तेल डिमांड का रेट ब्रेंट क्रूड से तय होता है. यानी भारत के लिए ब्रेंट क्रूड का रेट अमेरिकी डॉलर सूचकांक वायदा महत्व रखता है, अमेरिकी क्रूड का नहीं.
सोमवार को जून के लिए ब्रेंट क्रूड का रेट करीब 26 डॉलर प्रति बैरल था, जबकि मई के लिए ब्रेंट क्रूड वायदा रेट 23 डॉलर प्रति बैरल के आसपास था. इसमें भी नरमी आई, लेकिन यह बहुत ज्यादा नहीं टूटा.
हाजिर बाजार यानी आज के भाव की बात करें तो ब्रेंट क्रूड करीब 25 डॉलर प्रति बैरल के आसपास चल रहा है और इंडियन बॉस्केट का क्रूड करीब 20 डॉलर प्रति बैरल के आसपास चल रहा है. यानी भारत के लिए कच्चा तेल अब भी 20 डॉलर प्रति बैलर के आसपास है.
डब्लूटीआई वह क्रूड ऑयल होता है, जिसे अमेरिका के कुंओं से निकाला जाता है. ढुलाई के लिहाज से इसे भारत लाना आसान नहीं होता. सबसे अच्छी क्वालिटी का कच्चा तेल ब्रेंट क्रूड माना जाता है. दूसरी तरफ, खाड़ी देशों का यानी दुबई/ओमार क्रूड ऑयल थोड़ी हल्की क्वालिटी का होता है, लेकिन यह एशियाई बाजारों में काफी लोकप्रिय है.
ब्रेंट क्रूड और WTI क्रूड की कीमत में अक्सर कम से कम 10 डॉलर प्रति बैरल का अंतर देखा जाता रहा है. इस कीमत पर ओपेक देशों का काफी असर होता है.
भारत में कैसे तय होती है पेट्रोलियम की कीमत
जब भी कच्चा तेल गिरता है तो तमाम तरफ यह शोर मचने लगता है कि पेट्रोल-डीजल के रेट कम क्यों नहीं हो रहे. असल में भारत में पेट्रोल-डीजल के रेट क्रूड के ऊपर नीचे जाने से तय नहीं होते. पेट्रोलियम कंपनियां हर दिन दुनिया में पेट्रोल-डीजल का एवरेज रेट देखती हैं. यहां कई तरह के केंद्र और राज्य के टैक्स निश्चित हैं. भारतीय बॉस्केट के क्रूड रेट, अपने बहीखाते, पेट्रोलियम-डीजल के औसत इंटरनेशनल रेट आदि को ध्यान में रखते हुए पेट्रोलियम कंपनियां तेल का रेट तय करती हैं. इसलिए कच्चे तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव का हमारे यहां पेट्रोल-डीजल की कीमत पर तत्काल असर नहीं होता.
लेकिन बड़ी चिंता क्या है
एनर्जी एक्सपर्ट नरेंद्र तनेजा कहते हैं कि भारत या दुनिया की इकोनॉमी के लिए यह कोई शुभ संकेत नहीं है. उन्होंने कहा, 'कोरोना संकट की वजह से दुनिया की इकोनॉमी पस्त है. भारत में भी लॉकडाउन की वजह से पेट्रोलियम की मांग में भारी गिरावट आई है. ऐसे में कच्चे तेल की कीमतों का लगातार घटते जाना और इस स्तर पर चले जाना खाड़ी देशों की इकोनॉमी के डांवाडोल हो जाने का खतरा पैदा करता है. खाड़ी देशों की इकोनॉमी पूरी तरह से तेल पर निर्भर है. वहां करीब 80 लाख भारतीय काम करते हैं जो हर साल करीब 50 अरब डॉलर की रकम भारत भेजते हैं. वहां की इकोनॉमी गड़बड़ होने का मतलब है इस रोजगार पर संकट आना.'
उन्होंने कहा, 'इसके अलावा भारत के निर्यात का बड़ा हिस्सा खाड़ी देशों को जाता है, तो वहां की इकोनॉमी के डांवाडोल होने का मतलब है भारत के निर्यात पर बड़ी चोट पड़ना और मौजूदा इकोनॉमी की जो हालत है उसे देखते हुए यह बड़ी चोट होगी.'
भारत के लिए क्या है फायदे की बात
अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल का सस्ता होना, भारत के लिए कुछ मोर्चों पर अच्छी खबर मानी जा सकती है. केडिया कमोडिटी के प्रमुख अजय केडिया के मुताबिक हम भंडारण क्षमता बढ़ाकर इस मौके का फायदा उठा सकते हैं. अगर भंडारण क्षमता बढ़ाने पर तेजी के साथ काम हो तो लंबे समय तक निश्चिंत रहा जा सकता है. इसके अलावा सरकार एक बार फिर टैक्स बढ़ा, तेल से कमाई कर राजकोषीय घाटे को कम कर सकती है.
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