यह कार्यक्रम वर्तमान वर्ष से 2018 तक चरणबद्ध तरीके से कार्यान्वित किया जायेगा। डिजिटल इंडिया कार्यक्रम (1.5 MB) - पीडीएफ फाइल जो नई विंडों में खुलती है परिवर्तनकारी प्रकृति का है जो यह सुनिश्चित करेगा की सरकारी सेवाएँ इलेक्ट्रॉनिक रूप से नागरिकों के लिए उपलब्ध हैं।

आय-व्यय खाता है

UPSC CAPF AC interview for 2021 cycle postponed until further notice. The interviews of the shortlisted candidates were scheduled to take place from 31st October to 22nd November 2022. The revised interview dates will be announced later. The recruitment of Assistant Commandants is also ongoing through the 2022 cycle. The UPSC CAPF Result for the same was released on 16th September 2022. The selection process comprises of a Written Exam, Physical Test, and Interview/Personality Test. The finally appointed candidates will get a salary in the range of Rs. 56100 - Rs. 177500.

GDP की गणना और आधार वर्ष

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में GDP की गणना और आधार वर्ष पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ

केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (CSO) देश में सकल घरेलू उत्पाद (GDP) की गणना के लिये आधार वर्ष को 2011-12 से बदलकर 2017-18 करने पर विचार कर रहा है। मुख्य सांख्यिकीविद् के अनुसार, इस कार्य को उपभोक्ता व्यय सर्वेक्षण (CES) और उद्योगों के वार्षिक सर्वेक्षण (ASI) के बाद जल्द-से-जल्द किया जाएगा। गौरतलब है कि GDP का उपयोग मुख्यतः किसी देश के विकास को मापने के लिये एक पैमाने के रूप में किया जाता है। देश की वृद्धि दर की गणना करते समय अर्थव्यवस्था की वास्तविक स्थिति जानने के लिये आधार वर्ष का प्रयोग किया जाता है। विदित हो वर्तमान में भारत 2011-12 को आधार वर्ष के रूप में प्रयोग कर रहा है।

क्या होता है आधार वर्ष?

  • आधार वर्ष एक प्रकार का बेंचमार्क होता है जिसके संदर्भ में राष्ट्रीय आँकड़े जैसे- सकल घरेलू उत्पाद (GDP), सकल घरेलू बचत और सकल पूंजी निर्माण आदि की गणना की जाती है।
  • सकल घरेलू उत्पाद या GDP का आशय किसी देश में उत्पादित सभी वस्तुओं और सेवाओं के कुल मूल्य से होता है। विदित है कि GDP मुख्यतः 2 प्रकार की होती है: (1) नॉमिनल GDP और (2) वास्तविक GDP।
    • नॉमिनल GDP: यह चालू कीमतों (वर्तमान वर्ष की प्रचलित कीमत) में व्यक्त सभी वस्तुओं और सेवाओं के मूल्य को मापता है।
    • वास्तविक GDP: नॉमिनल GDP के विपरीत यह किसी आधार वर्ष की कीमतों पर व्यक्त की गई सभी वस्तुओं और सेवाओं के मूल्य को बताता है।

    आधार वर्ष के प्रयोग का इतिहास

    • भारत में राष्ट्रीय आय का पहला अनुमान केंद्रीय सांख्यिकी संगठन (CSO) द्वारा वर्ष 1956 में प्रकाशित किया गया था, उल्लेखनीय है कि इसमें 1948-49 को आधार वर्ष के रूप प्रयोग किया गया था।
    • आँकड़ों की उपलब्धता की स्थिति में सुधार के साथ-साथ गणना की कार्यप्रणाली में बदलाव किये गए। इस समय तक CSO अर्थव्यवस्था में कार्यबल का अनुमान लगाने के लिये राष्ट्रीय जनगणना में जनसंख्या के आँकड़ों पर निर्भर रहता था, इसी के कारण आधार वर्ष भी उन वर्षों से मेल खाता था जिनमें जनगणना आँकड़े जारी होते थे, जैसे-1970-71, 1980-81 आदि।
    • इसके पश्चात् CSO ने पाया कि कार्यबल के आकार पर जनगणना आँकड़ों की अपेक्षा राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण (NSS) के आँकड़े अधिक सटीक हैं और NSS के आँकड़ों के आधार पर आकलन किया जाने लगा।
    • ज्ञातव्य है कि इस प्रणाली को वर्ष 1999 में शुरू किया गया था जब आधार वर्ष को 1980-81 से संशोधित कर 1993-94 कर दिया गया था।

    आधार वर्ष में परिवर्तन की आवश्यकता

    • प्रत्येक अर्थव्यवस्था में समय-समय पर परिवर्तन होते रहते हैं और इन परिवर्तनों का वास्तविक खाता किसे कहते हैं? देश वास्तविक खाता किसे कहते हैं? के वृद्धि एवं विकास पर काफी प्रभाव पड़ता है। विशेषज्ञों के अनुसार, अर्थव्यवस्था के भीतर होने वाले इन्हीं संरचनात्मक परिवर्तनों (जैसे- GDP में सेवाओं वास्तविक खाता किसे कहते हैं? की बढ़ती हिस्सेदारी) को प्रतिबिंबित करने के लिये आकलन के आधार वर्ष को समय-समय पर संशोधित करने की आवश्यकता होती है।
    • इसके अलावा GDP की गणना के लिये आधार वर्ष में बदलाव का एक अन्य उद्देश्य वर्तमान परिस्थिति के अनुकूल सटीक आर्थिक आँकड़े एकत्रित करना भी होता है। क्योंकि सटीक आँकड़ों के अभाव में अर्थव्यवस्था के अंतर्गत कल्याणकारी योजनाओं का निर्माण संभव नहीं हो पाता है।
    • वर्ष 2011-12 पर आधारित GDP वर्तमान आर्थिक स्थिति को सही ढंग से प्रदर्शित नहीं करती है वहीं नए आधार वर्ष की शृंखला के संबंध में जानकारों का मानना है कि यह संयुक्त राष्ट्र के राष्ट्रीय खाते के दिशा-निर्देशों-2018 (United Nations Guidelines in System of National Accounts-2018) के अनुरूप होगी।
    • गौरतलब है कि दुनिया के विभिन्न देश आधार वर्ष को संशोधित करने हेतु अलग-अलग मानकों का प्रयोग करते हैं।

    आधार वर्ष का विवाद

    • ध्यातव्य है कि आखिरी बार वर्ष 2015 में आधार वर्ष में संशोधन किया गया था जिसके बाद विगत चार वर्षों में आकलन की पद्धति और डेटा के कारण वर्तमान GDP संबंधी आँकड़े विवादास्पद बने हुए हैं।
    • आधिकारिक आँकड़ों के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2019-20 की पहली तिमाही की GDP वृद्धि दर 5 प्रतिशत पर पहुँच गई है, जबकि इस विषय पर कुछ स्वतंत्र शोधकर्त्ताओं का अनुमान है कि बीते कुछ वर्षों में देश की GDP 0.36 प्रतिशत से 2.5 प्रतिशत अधिक अनुमानित की गई है।
    • इसी प्रकार अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) की मुख्य अर्थशास्त्री, गीता गोपीनाथ के अकादमिक शोध पत्र ने देश की विकास दर पर विमुद्रीकरण के प्रतिकूल प्रभाव को दर्शाया था। फिर भी वर्ष 2016-17 में देश की आधिकारिक GDP में 8.2 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जो एक दशक में सबसे अधिक है।
    • कई अर्थशास्त्रियों के अनुसार, यह समस्या आकलन की पद्धति और निजी कॉर्पोरेट क्षेत्र के योगदान का अनुमान लगाने में प्रयोग होने वाले आँकड़े में निहित है।
    • गौरतलब है कि CSO अर्थव्यवस्था में निजी क्षेत्र के योगदान का अनुमान लगाने के लिये कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय के आँकड़ों पर निर्भर रहता है और कई अर्थशास्त्रियों ने मंत्रालय के आँकड़ों को अविश्वसनीय कहा है। इसलिये यह संभव है कि निजी क्षेत्र के उत्पादन को वास्तविकता से अधिक मापा गया हो।
      • निजी क्षेत्र देश की GDP के लगभग एक-तिहाई हिस्से के लिये ज़िम्मेदार है।

      निष्कर्ष

      2017-18 को आधार वर्ष के रूप में मानने का प्रस्ताव स्वागत योग्य कदम है, हालाँकि वर्तमान GDP आकलन की कार्यप्रणाली और डेटा संबंधी विवादों को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। आधार वर्ष में परिवर्तन के बाद भी संदेह तब तक बना रहेगा जब तक कि आकलन की कार्यप्रणाली में सुधार नहीं किया जाएगा और आँकड़ों की विश्वसनीयता सुनिश्चित नहीं की जाएगी। वर्तमान समस्याओं के मद्देनज़र GDP कार्यप्रणाली की समीक्षा करने के लिये राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञों का एक स्वतंत्र आयोग स्थापित करने का प्रस्ताव रखा गया है।

      प्रश्न: आधार वर्ष क्या है? इसमें संशोधन की आवश्यकता पर चर्चा कीजिये।

      शाखा खाता से आप क्या समझते हैं? इनके क्या उद्देश्य हैं।

      शाखा खाता से आप क्या समझते हैं? इनके क्या उद्देश्य हैं।

      शाखा खाता से आप क्या समझते हैं? इनके क्या उद्देश्य हैं।

      शाखा खाता से आप क्या समझते हैं? इनके क्या उद्देश्य हैं। आश्रित शाखाओं को कितने प्रकार से विभाजित किया जा सकता है?

      शाखा खाता का अर्थ

      मुख्य कार्यालय एवं उसकी शाखाओं से सम्बन्धित खाते शाखा खाते कहलाते हैं। दूसरे शब्दों में, शाखा खाते के अन्तर्गत शाखाओं से सम्बन्धित व्यवहारों का उल्लेख प्रधान कार्यालय एवं शाखा कार्यालय की पुस्तकों में किया जाता है ताकि एक निश्चित अवधि में प्रत्येक शाखा की लाभ-हानि के साथ ही वित्तीय स्थिति ज्ञात की जा सके।

      शाखा खाते के उद्देश्य (OBJECTIVES OF BRANCHACCOUNTS)

      शाखा खाते के प्रमुख उद्देश्य निम्नांकित हैं :

      1. प्रत्येक शाखा की लाभ-हानि ज्ञात करना ।
      2. प्रत्येक शाखा के कार्यों पर नियंत्रण रखना।
      3. व्यवसाय की वास्तविक आर्थिक स्थिति ज्ञात करना ।
      4. प्रत्येक शाखा के लिए रोकड़ एवं वस्तुओं की व्यवस्था करना।
      5. प्रत्येक शाखा की कार्यक्षमता में वृद्धि करना।

      (I) आश्रित शाखाएँ (Dependent Branches)- आश्रित शाखाएँ अपना कार्य मुख्य कार्यालय के अधीन व उसके आदेशानुसार करती हैं। इन शाखाओं में विक्रय किया जाने वाला माल मुख्य कार्यालय द्वारा या उनके आदेशानुसार प्राप्त किया जाता है तथा आवश्यक व्ययों का भुगतान मुख्य कार्यालय द्वारा या उनके आदेशानुसार किया जाता है।

      सुविधानुसार आश्रित शाखाओं को निम्नानुसार विभाजित किया जा सकता है:

      1. केवल नकद विक्रय करने वाली आश्रित शाखाएँ,
      2. नकद एवं उधार विक्रय करने वाली आश्रित शाखाएँ,
      3. अंकित या विक्रय मूल्य पर माल प्राप्त करने वाली आश्रित शाखाएँ।

      1. केवल नकद विक्रय करने वाली आश्रित शाखाएँ- ये शाखाएँ मुख्य कार्यालय से लागत मूल्य पर माल प्राप्त कर उनका विक्रय केवल नकद में ही करता हैं तथा विक्रय की राशि प्रति दिन स्थानीय बैंक में मुख्य कार्यालय के नाम से खोले गये खाते में जमा करती हैं या मुख्य कार्यालय को प्रेषित करती हैं। इन शाखाओं के सभी स्थायी व्ययों, जैसे, वेतन, किराया आदि का भुगतान मुख्य कार्यालय द्वारा ही किया जाता है। साथ ही अन्य छोटे व्ययों के लिए राशि मुख्य कार्यालय से ही प्राप्त होती है।

      2. नकद एवं उधार विक्रय करने वाली आश्रित शाखाएँ- ये शाखाएँ मुख्य कार्यालय से माल लागत मूल्य पर प्राप्त कर उसका विक्रय नकद एवं उधार करती हैं, साथ ही नकद विक्रय की राशि प्रतिदिन स्थानीय बैंक में मुख्य कार्यालय के नाम से खोले गये खाते में जमा करती हैं या मुख्य कार्यालय को प्रेषित करती हैं। इन शाखाओं के सभी व्ययों का भुगतान मुख्य कार्यालय द्वारा होता है।

      3. अंकित या विक्रय मूल्य पर माल प्राप्त करने वाली शाखाएँ- ये शाखाएँ मुख्य कार्यालय से माल लागत मूल्य पर प्राप्त न कर विक्रय मूल्य पर या अंकित मूल्य पर प्राप्त करती हैं तथा उनका विक्रय नकद एवं उधार करती हैं।

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      घाटा कितने तरह का होता है और कैसे होती है उसकी गणना?

      राजस्व घाटा तब होता है जब सरकार का कुल खर्च उसकी अनुमानित आय से ज्‍यादा होता है.

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      राजकोषीय घाटे का आसान शब्‍दों में मतलब यह है कि सरकार को अपने खर्चों को पूरा करने के लिए कितना उधार लेने की जरूरत पड़ेगी.

      1. रेवेन्‍यू रिसीट (राजस्‍व प्राप्तियां) 1374203
      2. टैक्‍स रेवेन्‍यू 1101372
      3. नॉन-टैक्‍स रेवेन्‍यू 272831
      4. कैपिटल रिसीट 600991
      5. लोन की रिकवरी 17630
      6. अन्‍य रिसीट 47743
      7. उधारी और अन्‍य देनदारी 535618
      8. कुल रिसीट (1+4) 1975194
      9. कुल खर्च (10+13) 1975194
      10. रेवेन्‍यू अकाउंट जिसमें से 1690584
      11. ब्‍याज भुगतान 480714
      12. ग्रांट में कैपिटल एसेट बनाने के लिए एड 165733
      13. ऑन कैपिटल अकाउंट 284610
      14. राजस्‍व घाटा (10-1) 316381
      15. राजकोषीय घाटा [9-(1+5+6)] 535618
      16. प्राथमिक घाटा (15-11) 54904

      1. राजस्‍व घाटा का मतलब क्या है?
        राजस्व घाटा तब होता है जब सरकार के कुल खर्च उसकी अनुमानित आय से ज्‍यादा होते हैं. सरकार के राजस्व खर्च और राजस्व प्राप्तियों के बीच के अंतर को राजस्व घाटा कहा जाता है. यहां ध्‍यान रखने वाली बात यह है कि खर्च और आमदनी केवल राजस्‍व के संदर्भ में होती है.रेवेन्‍यू डेफिसिट या राजस्‍व घाटा दिखाता है कि सरकार के पास सरकारी विभागों को सामान्‍य तरीके से चलाने के लिए पर्याप्‍त राजस्‍व नहीं है. दूसरे शब्‍दों में कहें तो जब सरकार कमाई से ज्‍यादा खर्च करना शुरू कर देती है तो नतीजा राजस्‍व घाटा होता है. राजस्‍व घाटे को अच्‍छा नहीं माना जाता है. खर्च वास्तविक खाता किसे कहते हैं? और कमाई के इस अंतर को पूरा करने के लिए सरकार को उधार लेना पड़ता है या फिर वह विनिवेश का रास्‍ता अपनाती है.रेवेन्‍यू डेफिसिट के मामले में अक्‍सर सरकार अपने खर्चों को घटाने की कोशिश करती है या फिर वह टैक्‍स को बढ़ाती है. आमदनी बढ़ाने के लिए वह नए टैक्‍सों को ला भी सकती है या फिर ज्‍यादा कमाने वालों पर टैक्‍स का बोझ बढ़ा सकती है.
      2. राजकोषीय घाटा क्या है?
        यह सरकार के कुल खर्च और उधारी को छोड़ कुल कमाई के बीच का अंतर होता है. दूसरे शब्‍दों में कहें तो राजकोषीय घाटा बताता है कि सरकार को अपने खर्चों को पूरा करने के लिए कितने पैसों की जरूरत है. ज्‍यादा राजकोषीय घाटे का मतलब यह हुआ कि सरकार को ज्‍यादा उधारी की जरूरत पड़ेगी. राजकोषीय घाटे का आसान शब्‍दों में मतलब यह है कि सरकार को अपने खर्चों को पूरा करने के लिए कितना उधार लेने की जरूरत पड़ेगी.राजकोषीय घाटे को कम करने के लिए तमाम उपाय किए जा सकते हैं. सब्सिडी के रूप में सार्वजनिक खर्च को घटाना, बोनस, एलटीसी, लीव एनकैशमेंट इत्‍याद‍ि को घटाना शामिल हैं.
      3. प्राथमिक घाटा क्या है?
        चालू वित्‍त वर्ष के राजकोषीय घाटे से पिछली उधारी के ब्‍याज को घटाने पर प्राथमिक घाटा मिलता है. जहां राजकोषीय घाटे में ब्‍याज भुगतान सहित सरकार की कुल उधारी शामिल होती है. वहीं, प्राथमिक घाटे यानी प्राइमरी डेफिसिट में ब्‍याज के भुगतान को शामिल नहीं किया जाता है.प्राइमरी डेफिसिट का मतलब यह हुआ कि सरकार को ब्‍याज के भुगतान को हटाकर खर्चों को पूरा करने के लिए कितने उधार की जरूरत है. जीरो प्राइमरी डेफिसिट ब्‍याज के भुगतान के लिए उधारी की जरूरत को दिखाता है.ज्‍यादा प्राइमरी डेफिसिट चालू वित्‍त वर्ष में नई उधारी की जरूरत को दर्शाता है. चूंकि यह पहले से ही उधारी के ऊपर की रकम होती है. इसलिए इसे घटाने के लिए वही उपाय करने होंगे जो राजकोषीय घाटे के मामले में लागू होते हैं.

      डिजिटल इंडिया: डिजिटल रूप से सशक्त समाज और ज्ञान अर्थव्यवस्था के लिए एक कार्यक्रम

      मुख्य पृष्ठ

      डिजिटल इंडिया कार्यक्रम (1.5 MB) - पीडीएफ फाइल जो नई विंडों में खुलती है का उद्देश्य देश को डिजिटल रूप से सशक्त समाज और ज्ञान अर्थव्यवस्था में परिणत करना है। यह 7 अगस्त 2014 को डिजिटल इंडिया कार्यक्रम (1.5 MB) - पीडीएफ फाइल जो नई विंडों में खुलती है पर प्रधानमंत्री - बाहरी वेबसाइट जो एक नई विंडो में खुलती है की बैठक के दौरान कार्यक्रम के प्रारूप पर लिए गये महत्वपूर्ण निर्णयों का अनुपालन और सरकार के सभी मंत्रालयों को इस विशाल कार्यक्रम के प्रति जागरूक करने के लिए है जो सरकार के सभी क्षेत्रों पर रोशनी डालती है। यह कार्यक्रम इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी विभाग (डीईआईटीवाई) द्वारा परिकल्पित किया गया है।

      यह कार्यक्रम वर्तमान वर्ष से 2018 तक चरणबद्ध तरीके से कार्यान्वित किया जायेगा। डिजिटल इंडिया कार्यक्रम (1.5 MB) - पीडीएफ फाइल जो नई विंडों में खुलती है परिवर्तनकारी प्रकृति का है जो यह सुनिश्चित करेगा की सरकारी सेवाएँ इलेक्ट्रॉनिक रूप से नागरिकों के लिए उपलब्ध हैं।

      वर्तमान में अधिकतर ई-गवर्नेंस परियोजनाओं के लिए धन का स्रोत केन्द्रीय या राज्य सरकारों में संबंधित मंत्रालयों / विभागों के बजटीय प्रावधानों के माध्यम से होता है। डिजिटल इंडिया (1.5 MB) - पीडीएफ फाइल जो नई विंडों में खुलती है की परियोजना(ओं) के लिए धन की आवश्यकताओं का आकलन संबंधित नोडल मंत्रालयों/विभागों द्वारा किया जाएगा।

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