गिरता यूरो उन कारकों में से एक है जिसने केंद्रीय बैंक को जुलाई में 50 आधार अंकों की वृद्धि की घोषणा करने को मजबूर किया था, जो जून में संकेतित आकार से दोगुना था।

Forex Reserves: विदेशी मुद्रा भंडार ने फिर लगाया गोता, सात दिनों में 1.09 अरब डॉलर की आई गिरावट

प्रतीकात्मक तस्वीर

  • News18Hindi
  • Last Updated : November 11, 2022, 20:43 IST

हाइलाइट्स

विदेशी मुद्रा भंडार 1.09 अरब डॉलर घटकर 529.99 अरब डॉलर पर.
गोल्ड रिजर्व का मूल्य 70.5 करोड़ डॉलर घटकर 37.057 अरब डॉलर पर.
FCA 12 करोड़ डॉलर घटकर 470.73 अरब डॉलर रह गई.

मुंबई. देश के विदेशी मुद्रा भंडार (Foreign Exchange Reserves/Forex Reserves) में फिर गिरावट आई है. 4 नवंबर, 2022 को खत्म हुए सप्ताह में यह 1.09 अरब डॉलर विदेशी मुद्रा बाजार क्यों महत्वपूर्ण है घटकर 529.99 अरब डॉलर रह गया. इसका कारण गोल्ड रिजर्व में आई भारी गिरावट है. भारतीय रिजर्व बैंक यानी आरबीआई (RBI) की ओर से शुक्रवार को जारी आंकड़ों में यह जानकारी दी गई है.

रिजर्व बैंक के आंकड़ों के मुताबिक, पिछले सप्ताह विदेशी मुद्रा भंडार 6.56 अरब डॉलर बढ़कर 531.08 अरब डॉलर हो गया था जो वर्ष के दौरान किसी एक सप्ताह में आई सबसे अधिक तेजी थी. एक साल पहले अक्टूबर, विदेशी मुद्रा बाजार क्यों महत्वपूर्ण है 2021 में देश का विदेश मुद्रा भंडार 645 अरब डॉलर के अब तक के सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंच गया था.

प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के साथ निर्यात पर ध्यान देने का समय

एफडीआइ को प्रोत्साहित करने के लिए अर्थव्यवस्था के मूलभूत तत्वों को मजबूत करने की आवश्यकता है। यही कारण है कि जब अर्थव्यवस्था मजबूत होती है, तो रुपया भी प्राय: मजबूत होता है। निर्यात और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में वृद्धि ही गिरते रुपए को मजबूत बना सकते हैं।

प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के साथ निर्यात पर ध्यान देने का समय

अमरीकी डॉलर के मुकाबले रुपए में रेकॉर्ड गिरावट आई है। रुपया डॉलर के मुकाबले 77 के मनोवैज्ञानिक स्तर को पार कर अपने निचले स्तर पर पहुंच गया है। यह गिरावट एक ऐसे दौर में आई है, जब अमरीकी फेडरल रिजर्व द्वारा ब्याज दरें बढ़ाने का सिलसिला थमा नहीं है और भारत में महंगाई सबसे बड़ी चुनौती बनकर उभरी है। रुपए में रेकॉर्ड गिरावट के साथ ही देश का विदेशी मुद्रा भंडार 600 बिलियन डॉलर से नीचे चला गया है। भारतीय रिजर्व बैंक ने मुद्रा बाजार में हस्तक्षेप किया, लेकिन उसकी मंशा गिरावट को थामना था, न कि उसके रुख को बदलना। रिजर्व बैंक ने भारतीय रुपए की मजबूती के लिए डॉलर की काफी बिकवाली की है, जिससे विदेशी मुद्रा भंडार 3 सितम्बर 2021 के सर्वकालिक उच्च स्तर 642 अरब डॉलर से 45 अरब डॉलर कम हो गया। मौजूदा अनिश्चितता को देखते हुए आरबीआइ विदेशी मुद्रा भंडार को 600 अरब डॉलर पर बनाए रखना चाहती है। हालांकि विदेशी मुद्रा भंडार अब भी 12 महीने के आयात के लिए काफी है, लेकिन इसमें तेजी से कमी आ सकती है।
दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था अमरीका में महंगाई 40 साल के उच्चतम स्तर पर है। इस महंगाई से निपटने के लिए अमरीकी फेडरल रिजर्व ने करीब चार वर्ष बाद ब्याज दरों में वृद्धि की घोषणा की है और इस साल इस तरह की छह और बढ़ोतरी के स्पष्ट संकेत दिए हैं। वर्ष के अंत तक फेडरल ब्याज दरें 1.75 फीसदी से 2 फीसदी के बीच होंगी, जबकि 2023 के अंत तक फेडरल ब्याज दरें 2.8 प्रतिशत तक पहुंच सकती हैं। इससे पूर्व अमरीका में ब्याज दर लगभग शून्य पर थी। अमरीकी केंद्रीय बैंक द्वारा ब्याज दरों में वृद्धि से दुनिया भर के निवेशक अब अमरीका की ओर जा रहे हैं। वैश्विक निवेशक दुनिया भर की संपत्तियों में निवेश करने के लिए शून्य या कम ब्याज दरों वाले देशों से उधार लेते हैं। इसे ही 'कैरी ट्रेडÓ कहते हैं। अमरीका में ब्याज दर इस बढ़ोतरी से पूर्व लगभग शून्य थी। ऐसे में निवेशक वहां से लोन लेकर भारत सहित अन्य उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं में निवेश करते थे, जहां ब्याज दर ज्यादा है। कोरोना काल में भारतीय अर्थव्यवस्था में तेजी के पीछे यही 'कैरी ट्रेडÓ था, परन्तु अब 'कैरी ट्रेडÓ उलट रहा है। यही कारण है कि विदेशी संस्थागत निवेशक लगातार बिकवाली कर अपना निवेश निकाल रहे हैं। चालू वित्त वर्ष 2022-23 में अप्रेल से लेकर अब तक भारतीय बाजार से 5.8 अरब डॉलर का विदेशी निवेश निकाला जा चुका है। ऐसे में रुपए पर दबाव स्वाभाविक है।
भारतीय नीति निर्माता समुचित प्रबंधन द्वारा रुपए की गिरावट को रोक सकते हैं। वर्ष 2008 से 2011 के दौरान भी वैश्विक आर्थिक परिदृश्य संकटपूर्ण रहा था, लेकिन भारतीय रुपया लगातार मजबूत हो रहा था। रुपए की कमजोरी से डीजल-पेट्रोल महंगे हो सकते हैं। खाद्य तेल के भी महंगा होने की आशंका है, परन्तु रुपए की कमजोरी से निर्यातकों को लाभ हो सकता है। उच्च निर्यात द्वारा भारत न केवल व्यापार संतुलन, डॉलर स्टॉक इत्यादि में वृद्धि का लाभ ले सकता है, अपितु भारतीय अर्थव्यवस्था को पटरी पर ला सकता है। इसके लिए युद्ध स्तर की तैयारी की आवश्यकता है।
इसके बावजूद यह ध्यान रखना होगा कि भारतीय अर्थव्यवस्था मूलत: आयात आधारित अर्थव्यवस्था है। ऐसे में सरकार को रुपए को मजबूत करने के लिए हर संभव कदम उठाने होंगे। इसका सबसे अच्छा तरीका है, भारतीय उद्योगों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश अर्थात एफडीआइ को प्रोत्साहित किया जाए। एफडीआइ को प्रोत्साहित करने के लिए अर्थव्यवस्था के मूलभूत तत्वों को मजबूत करने की आवश्यकता है। यही कारण है कि जब अर्थव्यवस्था मजबूत होती है, तो रुपया भी प्राय: मजबूत होता है। निर्यात और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में वृद्धि ही गिरते रुपए को मजबूत बना सकते हैं।

Forex Reserves: देश के विदेशी मुद्रा भंडार में फिर आई गिरावट, जानें 7 दिनों में कितना बदला खजाना

प्रतीकात्मक तस्वीर

  • पीटीआई
  • Last Updated : September 02, 2022, 20:57 IST

हाइलाइट्स

विदेशी मुद्रा भंडार 6.687 अरब डॉलर घटकर 564.053 अरब डॉलर पर.
गोल्ड रिजर्व का मूल्य 70.4 करोड़ डॉलर घटकर 39.914 अरब डॉलर पर.
FCA 5.779 अरब डॉलर घटकर 501.216 अरब डॉलर रह गई.

नई दिल्ली. देश के विदेशी मुद्रा भंडार (Foreign Exchange Reserves/Forex Reserves) में फिर गिरावट आई है. 19 अगस्त, 2022 को खत्म हुए सप्ताह में यह 6.687 अरब डॉलर घटकर 564.053 अरब डॉलर रह गया. भारतीय रिजर्व बैंक यानी आरबीआई (RBI) की ओर से शुक्रवार को जारी आंकड़ों में यह जानकारी दी गई है.

रिजर्व बैंक के आंकड़ों के मुताबिक, इससे पहले 12 अगस्त को खत्म हुए सप्ताह में विदेशी मुद्रा भंडार 2.23 अरब डॉलर घटकर 570.74 अरब डॉलर रहा था. 5 अगस्त को खत्म हुए सप्ताह में यह 89.7 करोड़ डॉलर घटकर 572.97 अरब डॉलर रहा था. इससे पहले 29 जुलाई को खत्म हुए सप्ताह के दौरान, विदेशी मुद्रा भंडार 2.315 अरब डॉलर बढ़कर 573.875 अरब डॉलर रहा था.

विदेशी मुद्रा बाजार क्यों महत्वपूर्ण है

euro

फरवरी में यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के बाद से यूरो में डॉलर के मुकाबले भारी गिरावट आई है। इस हफ्ते यह मनोवैज्ञानिक रूप से महत्वपूर्ण डॉलर की पैरिटी/समानता के स्तर से नीचे गिर गया है, क्योंकि निवेशक को ऊंचे गैस और बिजली दामों और रूसी गैस आपूर्ति के आसपास अनिश्चितता के कारण यूरोज़ोन में संभावित मंदी की चिंता है।

यूरोपीयन सेंट्रल बैंक के आंकड़ों के मुताबिक मंगलवार को एकल मुद्रा 0.9927 प्रति अमेरिकी डॉलर पर बंद हुई थी। यह दो दशकों में ग्रीनबैक के मुकाबले सबसे कम पर बंद हुई है। वर्तमान गिरावट तब तेज हो गई: जब रूस ने यूक्रेन के खिलाफ युद्ध छेड़ा, तब एक यूरो की कीमत 1.15 डॉलर थी।

यूरो गिर क्यों रहा है?

प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के साथ निर्यात पर ध्यान देने का समय

एफडीआइ को प्रोत्साहित करने के लिए अर्थव्यवस्था के मूलभूत तत्वों को मजबूत करने की आवश्यकता है। यही कारण है कि जब अर्थव्यवस्था मजबूत होती है, तो रुपया भी प्राय: मजबूत होता है। निर्यात और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में वृद्धि ही गिरते रुपए को मजबूत बना सकते हैं।

प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के साथ निर्यात पर ध्यान देने का समय

अमरीकी डॉलर के मुकाबले रुपए में रेकॉर्ड गिरावट आई है। रुपया डॉलर के मुकाबले 77 के मनोवैज्ञानिक स्तर को पार कर अपने निचले स्तर पर पहुंच गया है। यह गिरावट एक ऐसे दौर में आई है, जब अमरीकी फेडरल रिजर्व द्वारा ब्याज दरें बढ़ाने का सिलसिला थमा नहीं है और भारत में महंगाई सबसे बड़ी चुनौती बनकर उभरी है। रुपए में रेकॉर्ड गिरावट के साथ ही देश का विदेशी मुद्रा भंडार 600 बिलियन डॉलर से नीचे चला गया है। भारतीय रिजर्व बैंक ने मुद्रा बाजार में हस्तक्षेप किया, लेकिन उसकी मंशा गिरावट को थामना था, न कि उसके रुख को बदलना। रिजर्व बैंक ने भारतीय रुपए की मजबूती के लिए डॉलर की काफी बिकवाली की है, जिससे विदेशी मुद्रा भंडार 3 सितम्बर 2021 के सर्वकालिक उच्च स्तर 642 अरब डॉलर से 45 अरब डॉलर कम हो गया। मौजूदा अनिश्चितता को देखते हुए आरबीआइ विदेशी मुद्रा भंडार को 600 अरब डॉलर पर बनाए रखना चाहती है। हालांकि विदेशी मुद्रा भंडार अब भी 12 महीने के आयात के लिए काफी है, लेकिन इसमें तेजी से कमी आ सकती है।
दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था अमरीका में महंगाई 40 साल के उच्चतम स्तर पर है। इस महंगाई से निपटने के लिए अमरीकी फेडरल रिजर्व ने करीब चार वर्ष बाद ब्याज दरों में वृद्धि की घोषणा की है और इस साल इस तरह की छह और बढ़ोतरी के स्पष्ट संकेत दिए हैं। वर्ष के अंत तक फेडरल ब्याज दरें 1.75 फीसदी से 2 फीसदी के बीच होंगी, जबकि 2023 के अंत तक फेडरल विदेशी मुद्रा बाजार क्यों महत्वपूर्ण है ब्याज दरें 2.8 प्रतिशत तक पहुंच सकती हैं। इससे पूर्व अमरीका में ब्याज दर लगभग शून्य पर थी। अमरीकी केंद्रीय बैंक द्वारा ब्याज दरों में वृद्धि से दुनिया भर के निवेशक अब अमरीका की ओर जा रहे हैं। वैश्विक निवेशक दुनिया भर की संपत्तियों में निवेश करने के लिए शून्य या कम ब्याज दरों वाले देशों से उधार लेते हैं। इसे ही 'कैरी ट्रेडÓ कहते हैं। अमरीका में ब्याज दर इस बढ़ोतरी से पूर्व लगभग शून्य थी। ऐसे में निवेशक वहां से लोन लेकर भारत सहित अन्य उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं में निवेश करते थे, जहां ब्याज दर ज्यादा है। कोरोना काल में भारतीय अर्थव्यवस्था में तेजी के पीछे यही 'कैरी ट्रेडÓ था, परन्तु अब 'कैरी ट्रेडÓ उलट रहा है। यही कारण है कि विदेशी संस्थागत निवेशक लगातार बिकवाली कर अपना निवेश निकाल रहे हैं। चालू वित्त वर्ष 2022-23 में अप्रेल से लेकर अब तक भारतीय बाजार से 5.8 अरब डॉलर का विदेशी निवेश निकाला जा चुका है। ऐसे में रुपए पर दबाव स्वाभाविक है।
भारतीय नीति निर्माता समुचित प्रबंधन द्वारा रुपए की गिरावट को रोक सकते हैं। वर्ष 2008 से 2011 के दौरान भी वैश्विक आर्थिक परिदृश्य संकटपूर्ण रहा था, लेकिन भारतीय रुपया लगातार मजबूत हो रहा था। रुपए की कमजोरी से डीजल-पेट्रोल महंगे हो सकते हैं। खाद्य तेल के भी महंगा होने की आशंका है, परन्तु रुपए की कमजोरी से निर्यातकों को विदेशी मुद्रा बाजार क्यों महत्वपूर्ण है लाभ हो सकता है। उच्च निर्यात द्वारा भारत न केवल व्यापार संतुलन, डॉलर स्टॉक इत्यादि में वृद्धि का लाभ ले सकता है, अपितु भारतीय अर्थव्यवस्था को पटरी पर ला सकता है। इसके लिए युद्ध स्तर की तैयारी की आवश्यकता है।
इसके बावजूद यह ध्यान रखना होगा कि भारतीय अर्थव्यवस्था मूलत: आयात आधारित अर्थव्यवस्था है। ऐसे में सरकार को रुपए को मजबूत करने के लिए हर संभव कदम उठाने होंगे। इसका सबसे अच्छा तरीका है, भारतीय उद्योगों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश अर्थात एफडीआइ को प्रोत्साहित किया जाए। एफडीआइ को प्रोत्साहित करने के लिए अर्थव्यवस्था के मूलभूत तत्वों को मजबूत करने की आवश्यकता है। यही कारण है कि जब अर्थव्यवस्था मजबूत होती है, तो रुपया भी प्राय: मजबूत होता है। निर्यात और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में वृद्धि ही गिरते रुपए को मजबूत बना सकते हैं।

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