Edited By: Alok Kumar @alocksone
Published on: September 14, 2022 12:38 IST

RCEP और भारत

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में क्षेत्रीय व्यापार आर्थिक साझेदारी, इसके वैश्विक महत्त्व तथा भारतीय संदर्भ में इसके महत्त्व पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ

हाल ही में 16 सदस्य देशों वाले क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (Regional Comprehensive Economic Partnership- RCEP) समूह के व्यापार मंत्रियों ने वचनबद्धता जताई कि वे नवंबर में आयोजित होने वाले आसियान शिखर सम्मेलन से पहले प्रस्तावित मुक्त व्यापार समझौते (Free Trade Agreement- FTA) पर असहमति के अपने सभी मुद्दों को सुलझा लेंगे।

भारत सरकार अभी तक इस व्यापार मंच में शामिल होने के प्रति सतर्कता बरत रही है। लेकिन, चूँकि RCEP के सदस्यों की ओर से दबाव बढ़ता जा रहा है, भारत सरकार को व्यापार समझौते पर अपनी रणनीति के संबंध में सावधानीपूर्वक विचार करने की आवश्यकता है।

क्या है क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी?

  • RCEP 10 आसियान देशों और उनके FTA भागीदारों- भारत, चीन, जापान, कोरिया, ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड के बीच प्रस्तावित एक मुक्त व्यापार समझौता है।
  • इसका उद्देश्य व्यापार और निवेश को बढ़ावा देने के लिये इसके सदस्य देशों के बीच व्यापार नियमों को उदार एवं सरल बनाना है।
  • इसकी औपचारिक शुरुआत नवंबर 2012 में कंबोडिया में आसियान शिखर सम्मेलन में की गई थी।
  • RCEP को ट्रांस-पैसिफिक भागीदारी के एक विकल्प के रूप में भी देखा जाता है।
  • इस समझौते के संपन्न होने पर यह वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद के 25 प्रतिशत और वैश्विक व्यापार के 30 प्रतिशत का प्रतिनिधित्व करेगा।

RCEP का महत्त्व

  • RCEP की अवधारणा जब क्रियाशील होगी तो लगभग 5 अरब लोगों की आबादी के लिहाज़ से यह सबसे बड़ा व्यापार ब्लॉक बन जाएगा।
  • इसमें विश्व के सकल घरेलू उत्पाद का अनुमानतः 40% और वैश्विक व्यापार का 30% प्रभुत्व होगा।
  • महत्त्वाकांक्षी RCEP का एक अनूठा महत्त्व यह है कि इसमें एशिया की (चीन, भारत और जापान) तीन सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाएँ शामिल हैं।
  • RCEP समझौते में वस्तुओं का व्यापार, सेवाओं का व्यापार, निवेश, आर्थिक और तकनीकी सहयोग, बौद्धिक संपदा, प्रतिस्पर्द्धा, विवाद निपटान और अन्य मुद्दे शामिल होंगे।

भारत क्यों नहीं है तैयार?

  • इस व्यापार संधि में शामिल होने की भारत की अनिच्छा इस अनुभव से प्रेरित है कि देश को कोरिया, मलेशिया और जापान जैसे देशों के साथ मुक्त व्यापार समझौतों का कोई लाभ प्राप्त नहीं हुआ है।
  • समझौतों का कार्यान्वयन शुरू होने के बाद इन देशों से भारत के आयात में तो वृद्धि हुई लेकिन भारत से निर्यात में उस गति से वृद्धि नहीं हुई, जिससे देश के व्यापार घाटे का विस्तार हुआ।
  • भारत पहले से ही 16 RCEP देशों के साथ व्यापार घाटे की स्थिति में है। अपने बाज़ार को और अधिक मुक्त बनाने से स्थिति और बिगड़ सकती है।
  • इंडिया इंक (India Inc) के एक बड़े तबके को आशंका है कि RCEP का अंग बनने से उपभोक्ता वस्तुओं और औद्योगिक क्षेत्रों, दोनों में अधिक प्रतिस्पर्द्धी मूल्य वाले चीनी उत्पादों की आमद बढ़ेगी।
  • प्रशुल्क उन्मूलन और कटौती को लेकर RCEP के ज़्यादातर सदस्य 92 प्रतिशत वस्तुओं पर शून्य प्रशुल्क लगाने की बात कर रहे हैं, जबकि भारत इसके लिये तैयार नहीं है।
  • भारतीय उद्योग और कृषि क्षेत्र ज़्यादातर उत्पादों पर प्रशुल्क में इतनी भारी कमी के लिये तैयार नहीं हैं, क्योंकि कई क्षेत्रों में वे अब भी विकासशील स्थिति में हैं और प्रशुल्क मुक्त प्रतियोगिता उनके हित में नहीं है।
  • यह समझौता भारत के डिजिटल उद्योग के संरक्षण को भी प्रभावित करेगा। इन देशों से भारत में सस्ते सामानों के आयात से घरेलू उद्योगों पर असर पड़ेगा।
  • इस प्रकार व्यापारिक वस्तुओं के एक महत्त्वपूर्ण क्षेत्र के लिये टैरिफ की समाप्ति को घरेलू उद्योग से प्रतिरोध का सामना करना पड़ेगा। एक मंद होती अर्थव्यवस्था ऐसी आशंकाओं को और बल प्रदान करेगी।

क्या भारत को इसमें शामिल होना चाहिये?

मुक्त व्यापार समझौते के निराशाजनक प्रदर्शन के लिये उच्च अनुपालन लागत, प्रशासनिक विलंब आदि को उत्तरदायी ठहराया जा सकता है। लेकिन आर्थिक विश्लेषकों का मानना है कि चूँकि भारत का निर्यात पिछले पाँच वर्षों से गतिहीन बना है, इस तरह की व्यापार संधियों से कन्नी काटना विवेकपूर्ण दृष्टिकोण नहीं है। यह समझने की आवश्यकता है कि इन व्यापार समूहों में शामिल होने से जो दीर्घकालिक लाभ होंगे, वे अल्पकालिक लागतों से बहुत अधिक होंगे। यह सुनिश्चित करने के लिये:

  • भारत को संवेदनशील क्षेत्रों के लिये रियायतों और सुरक्षा उपायों पर वार्ता करनी चाहिये।
  • इसके अतिरिक्त प्रस्तावित टैरिफ कटौतियों को पाँच से दस वर्ष की अवधि के लिये चरणबद्ध किया जा सकता है जो उद्योग को अनुकूल बनने का समय प्रदान करेगा।
  • औद्योगिक क्षेत्र के दबाव में व्यापार संधि की राह पर आगे नहीं बढ़ना भारत के लिये अत्यंत नुकसानदेह हो सकता सबसे बड़ा व्यापार मंच है।

वैश्विक व्यापार की जो प्रकृति है, उसमें इन मुक्त व्यापार समझौतों में शामिल होना न केवल वैश्विक मूल्य शृंखलाओं (Global Value Chains) के साथ देश के एकीकरण को धीरे-धीरे सुगम बनाएगा, बल्कि निवेश के लिये अधिकाधिक अवसर भी उपलब्ध होंगे।

निष्कर्ष:

इस व्यापार व्यवस्था में भविष्य की बड़ी संभावनाएँ विद्यमान सबसे बड़ा व्यापार मंच हैं क्योंकि इसमें चीन और भारत जैसी तेज़ी से बढ़ रही दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाएँ हैं। RCEP समझौते का उद्देश्य आसियान सदस्य देशों और आसियान के एफटीए पार्टनर्स के बीच एक आधुनिक, व्यापक, उच्च गुणवत्तापूर्ण और परस्पर लाभकारी आर्थिक साझेदारी समझौता करना है। भारत को वैश्विक मूल्य शृंखलाओं से जुड़ने के इस अवसर का लाभ उठाना चाहिये, जबकि इसके साथ ही विनिर्माण प्रतिस्पर्द्धा को प्रभावित करने वाले गंभीर मुद्दों को भी संबोधित करना चाहिये।

प्रश्न: वर्तमान वैश्विक परिदृश्य में RCEP के महत्त्व को देखते हुए भारतीय संदर्भ में RCEP की प्रासंगिकता पर प्रकाश डालिये।

America का व्यापार एक साल में भारत के साथ रिकाॅर्ड तेजी से बढ़ा, अपने सभी साझेदार देशों में से सबसे ज्यादा

जनवरी से जून के बीच अमेरिका ने भारत को 23 अरब सबसे बड़ा व्यापार मंच डॉलर का निर्यात किया जबकि भारत ने अमेरिका को 44 अरब डॉलर का निर्यात किया है।

Alok Kumar

Edited By: Alok Kumar @alocksone
Published on: September 14, 2022 12:38 IST

bilateral trade- India TV Hindi

Photo:PTI bilateral trade

Highlights

  • 2022 के पहले छह महीने में भारत और अमेरिका के बीच 67 अरब डॉलर का व्यापार हुआ
  • अमेरिका ने भारत को 23 अरब डॉलर का निर्यात किया
  • अमेरिका का अपने शीर्ष 15 साझेदारों के साथ व्यापार बढ़ा है

America और उसके शीर्ष 15 साझेदार देशों के बीच बीते एक साल में व्यापार में वृद्धि हुई है लेकिन सबसे अधिक वृद्धि भारत के साथ होने वाले व्यापार में हुई है। कोलकाता में अमेरिका की महावाणिज्य दूत मेलिंडा पावेक ने यह कहा। उद्योग मंडल सीआईआई द्वारा कोलकाता में आयोजित ‘ईस्ट इंडिया समिट 2022’ में एक सत्र को संबोधित करते हुए पावेक ने कहा कि 2022 के पहले छह महीने में भारत और अमेरिका के बीच 67 अरब डॉलर का व्यापार हुआ है।

भारत ने अमेरिका को 44 अरब डॉलर का निर्यात किया

उन्होंने कहा, ‘‘जनवरी से जून के बीच अमेरिका ने भारत को 23 अरब डॉलर का निर्यात किया जबकि भारत ने अमेरिका को 44 अरब डॉलर का निर्यात किया है।’’ पावेक ने कहा, ‘‘बीते एक साल में अमेरिका का अपने शीर्ष 15 साझेदारों के साथ व्यापार बढ़ा है और मैं गर्व के साथ कहना चाहती हूं कि सबसे बड़ी वृद्धि भारत के साथ व्यापार में हुई है। अमेरिकी कंपनियां भारत के लिए प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का सबसे बड़ा स्रोत हैं।’’ आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2021 में अमेरिका और भारत सबसे बड़ा व्यापार मंच के बीच माल एवं सेवा का द्विपक्षीय व्यापार 157 अरब डॉलर रहा था। पावेक ने कहा कि अमेरिका की कई एजेंसियां पूर्वी भारत में विकास परियोजनाओं में शामिल हैं।

जल्द करेंगे व्यापार नीति मंच की बैठक

भारत और अमेरिका के बीच व्यापार और निवेश को बढ़ावा देने के तरीकों पर चर्चा करने के लिए व्यापार नीति मंच (टीपीएफ) की अगली मंत्रिस्तरीय बैठक 'बहुत जल्द' अमेरिका में आयोजित की जायेगी। भारत और अमेरिका ने पिछले साल 23 नवंबर को नयी दिल्ली में टीपीएफ की 12वीं बैठक आयोजित की थी। यह मंच अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि (यूएसटीआर) के नेतृत्व में एक अंतर-एजेंसी सहयोग है। केंद्रीय इस बैठक में पहचान करने योग्य और कार्य के नए क्षेत्रों पर चर्चा की जायेगी। इसके लिए दोनों देशों की टीमों को एक-दूसरे के साथ काम शुरू करने के लिए कहा गया है।" हाल ही में केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पियूष गोयल ने अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि कैथरीन ताई और अमेरिका की वाणिज्य मंत्री गिना एम रायमोंडो के साथ यहां द्विपक्षीय बैठक की। उन्होंने अमेरिका के जीएसपी कार्यक्रम के तहत व्यापार लाभ बहाल करने के बारे में पूछे जाने पर कहा, "मुझे नहीं लगता कि यह अब कोई मुद्दा है।"

भारत और अमेरिका 4 साल बाद व्यापार नीति मंच (Trade Policy Forum) को पुनर्जीवित करेंगे

भारत और अमेरिका चार साल के बाद व्यापार नीति मंच (Trade Policy Forum) को पुनर्जीवित करने के अलावा बाजार पहुंच और डिजिटल व्यापार जैसे मुद्दों पर मतभेदों को हल करने के तरीकों को खोजने के लिए सहमत हुए हैं।

मुख्य बिंदु

  • यह समझौता अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि कैथरीन ताई (Katherine Tai) की दो दिवसीय यात्रा की शुरुआत में किया गया था।
  • दोनों देशों के वार्ताकारों ने एक व्यापार पैकेज पर हस्ताक्षर करने के लिए एक वर्ष से अधिक समय तक संघर्ष किया क्योंकि भारत और अमेरिका में टैरिफ जैसे विभिन्न मुद्दों पर मतभेद थे।
  • दो दिवसीय यात्रा के दौरान, अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि ने दोनों देशों के बीच बाजार पहुंच प्रतिबंध, अप्रत्याशित नियम, उच्च टैरिफ और प्रतिबंधित डिजिटल व्यापार जैसे मुद्दों पर प्रकाश डाला।

व्यापार नीति मंच का पुनरुद्धार

भारत और अमेरिका चार साल बाद अपने व्यापार नीति मंच को पुनर्जीवित करने पर सहमत हुए हैं। पुनर्जीवित मंच द्विपक्षीय व्यापार का विस्तार करने में मदद करेगा जो कभी भी अपनी क्षमता के अनुरूप नहीं रहा है। यह बाधाओं को दूर करने के लिए नियमित संपर्क स्थापित करके द्विपक्षीय व्यापार को गहरा करने में मदद करेगा।

भारत-अमेरिका व्यापार संबंध

अमेरिका भारत का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है, जबकि भारत इसका 9वां सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है। भारत से आयात की जाने वाली प्रमुख वस्तुओं में सूचना प्रौद्योगिकी सेवाएं, मशीनरी, वस्त्र, रत्न और हीरे, लोहा और इस्पात उत्पाद, रसायन, चाय, कॉफी और अन्य खाद्य खाद्य उत्पाद शामिल हैं। भारत द्वारा आयात की जाने वाली अमेरिकी वस्तुएं उर्वरक, विमान, हार्डवेयर, कंप्यूटर चिकित्सा उपकरण और स्क्रैप धातु हैं। अमेरिका भारत का सबसे बड़ा निवेश भागीदार भी है।

व्यापार नीति फोरम ( Trade Policy Forum)

व्यापार नीति मंच कार्यक्रम जुलाई 2005 में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बुश और भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह द्वारा बनाया गया था। यह दोनों देशों के एक प्रतिनिधि द्वारा चलाया जाता है। यह कार्यक्रम द्विपक्षीय व्यापार और निवेश प्रवाह को बढ़ाने के लक्ष्य के साथ बनाया गया था।

चीन को पीछे छोड़कर भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार बना अमेरिका, आयात से अधिक रहा हमारा निर्यात

अमेरिका बना भारत का सबसे बड़ा ट्रेड पार्टनर.

अमेरिका ने चीन को पछाड़ते हुए भारत के साथ 2021-22 में 119.42 अरब डॉलर का व्यापार किया है. इसमें भारत का निर्यात अधिक जब . अधिक पढ़ें

  • News18Hindi
  • Last Updated : May 29, 2022, 12:52 IST

नई दिल्ली. अमेरिका वित्त वर्ष 2021-22 में भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार बनकर उभरा है. इस तरह भारत के साथ व्यापार के मामले में अमेरिका ने चीन को पीछ़े छोड़ दिया है. इसे दोनों देशों के बीच मजबूत होते आर्थिक रिश्तों के तौर पर देखा जा सकता है.

वाणिज्य मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, 2021-22 में अमेरिका और भारत का द्विपक्षीय व्यापार बढ़कर 119.42 अरब डॉलर पर पहुंच गया. 2020-21 में यह आंकड़ा 80.51 अरब डॉलर का था. आंकड़ों के अनुसार, 2021-22 में भारत का अमेरिका को निर्यात बढ़कर 76.11 अरब डॉलर पर पहुंच गया, जो इससे पिछले वित्त वर्ष में 51.62 अरब डॉलर रहा था. वहीं, इस दौरान अमेरिका से भारत का आयात बढ़कर 43.31 अरब डॉलर पर पहुंच गया, जो इससे पिछले वित्त वर्ष में 29 अरब डॉलर था.

चीन के साथ व्यापार में आई गिरावट
आंकड़ों के अनुसार, 2021-22 में भारत-चीन द्वपिक्षीय व्यापार 115.42 अरब डॉलर रहा, जो 2020-21 में 86.4 अरब डॉलर था. वित्त वर्ष के दौरान चीन को भारत का निर्यात मामूली बढ़कर 21.25 अरब डॉलर पर पहुंच गया जो 2020-21 में 21.18 अरब डॉलर रहा था. वहीं, इस दौरान चीन से भारत का आयात बढ़कर 94.16 अरब डॉलर पर पहुंच गया, जो 2020-21 में 65.21 अरब डॉलर पर था. वित्त वर्ष के दौरान भारत का चीन के साथ व्यापार घाटा बढ़कर 72.91 अरब डॉलर पर पहुंच गया जो 2020-21 में 44 अरब डॉलर रहा था.

भारत पर बढ़ रहा भरोसा
व्यापार क्षेत्र के विशेषज्ञों का मानना है कि आगामी वर्षों में भारत का अमेरिका के साथ द्वपक्षीय व्यापार और बढ़ेगा, जिससे दोनों देशों के आर्थिक रिश्तों को और मजबूती मिलेगी. भारतीय निर्यात सबसे बड़ा व्यापार मंच संगठनों के महासंघ (फियो) के उपाध्यक्ष खालिद खान ने कहा कि भारत एक भरोसेमंद व्यापार भागीदार के रूप में उभर रहा है और वैश्विक कंपनियां चीन पर अपनी निर्भरता कम कर रही हैं. वैश्विक कंपनियां अपने कारोबार का भारत और अन्य देशों में विविधीकरण कर रही हैं. खान ने कहा, “आगामी बरसों में भारत-अमेरिका द्वपिक्षीय व्यापार और बढ़ेगा. इससे आर्थिक रिश्तों को और मजबूती मिलेगी.”

अमेरिका के साथ ट्रेड सरप्लस में भारत
भारतीय बागान प्रबंधन संस्थान (आईआईपीएम), बेंगलूर के निदेशक राकेश मोहन जोशी ने कहा कि 1.39 अरब की आबादी के साथ भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता बाजार है. तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के चलते अमेरिका और भारत की कंपनियों के पास प्रौद्योगिकी हस्तांतरण, विनिर्माण, व्यापार और निवेश के काफी अवसर हैं. जोशी ने बताया कि भारत द्वारा अमेरिका को मुख्य रूप से पेट्रोलियम उत्पादों, पालिश हीरों, फार्मा उत्पाद, आभूषण, हल्के तेल आदि का निर्यात किया जाता है. वहीं, अमेरिका से भारत पेट्रोलियम पदार्थ, तरल प्राकृतिक गैस, सोने, कोयले और बादाम का आयात करता है. अमेरिका उन कुछ देशों में है जिनके साथ भारत ट्रेड सरप्लस की स्थिति में है.

ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें News18 हिंदी| आज की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट, पढ़ें सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट News18 हिंदी|

सबसे बड़ा व्यापार मंच

अस्वीकरण :
इस वेबसाइट पर दी की गई जानकारी, प्रोडक्ट और सर्विसेज़ बिना किसी वारंटी या प्रतिनिधित्व, व्यक्त या निहित के "जैसा है" और "जैसा उपलब्ध है" के आधार पर दी जाती हैं। Khatabook ब्लॉग विशुद्ध रूप से वित्तीय प्रोडक्ट और सर्विसेज़ की शैक्षिक चर्चा के लिए हैं। Khatabook यह गारंटी नहीं देता है कि सर्विस आपकी आवश्यकताओं को पूरा करेगी, या यह निर्बाध, समय पर और सुरक्षित होगी, और यह कि त्रुटियां, यदि कोई हों, को ठीक किया जाएगा। यहां उपलब्ध सभी सामग्री और जानकारी केवल सामान्य सूचना उद्देश्यों के लिए है। कोई भी कानूनी, वित्तीय या व्यावसायिक निर्णय लेने के लिए जानकारी पर भरोसा करने से पहले किसी पेशेवर से सलाह लें। इस जानकारी का सख्ती से अपने जोखिम पर उपयोग करें। वेबसाइट पर मौजूद किसी भी गलत, गलत या अधूरी जानकारी के लिए Khatabook जिम्मेदार नहीं होगा। यह सुनिश्चित करने के हमारे प्रयासों के बावजूद कि इस वेबसाइट पर निहित जानकारी अद्यतन और मान्य है, Khatabook किसी भी उद्देश्य के लिए वेबसाइट की जानकारी, प्रोडक्ट, सर्विसेज़ या संबंधित ग्राफिक्स की पूर्णता, विश्वसनीयता, सटीकता, संगतता या उपलब्धता की गारंटी नहीं देता है।यदि वेबसाइट अस्थायी रूप से अनुपलब्ध है, तो Khatabook किसी भी तकनीकी समस्या या इसके नियंत्रण से परे क्षति और इस वेबसाइट तक आपके उपयोग या पहुंच के परिणामस्वरूप होने वाली किसी भी हानि या क्षति के लिए उत्तरदायी नहीं होगा।

We'd love to hear from you

We are always available to address the needs of our users.
+91-9606800800

रेटिंग: 4.92
अधिकतम अंक: 5
न्यूनतम अंक: 1
मतदाताओं की संख्या: 592