2020 के आर्थिक मंदी के समय अमेरिका ने लोगों के खाते में सीधे कैश ट्रांसफर किया था, ये पैसा अमेरिकी लोगों ने दुनिया के बाकी देशों में निवेश भी किया था, अब ये पैसा भी वापस अमेरिका लौट रहा है.
क्यों आती है रुपये में कमजोरी, डॉलर से ही क्यों होती है तुलना
Dollar Vs Rupee: रुपये में कमजोरी कई वजह से होती है। इसका सबसे आम कारण है डॉलर की डिमांड बढ़ जाना। अंतरराष्ट्रीय बाजार में होने वाली किसी भी उथल-पुथल से निवेशक घबराकर डॉलर खरीदने लगते हैं। ऐसे में डॉलर की मांग बढ़ जाती है और बाकी मुद्राओं में गिरावट शुरू हो जाती है। शेयर बाजार की उथल-पुथल का भी रुपये की कीमत पर डॉलर की कीमत रुपये के मुकाबले क्यों बढ़ रही है? असर होता है।
रुपये की तुलना डॉलर से ही क्यों
वैश्विक स्तर पर अधिकांश मुद्राओं की तुलना डॉलर से होती है। रुपये की डॉलर से ही तुलना क्यों होती है? इस सवाल का जवाब छिपा है द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान हुए ‘ब्रेटन वुड्स एग्रीमेंट’ में। इस समझौते में न्यूट्रल ग्लोबल करेंसी बनाने का प्रस्ताव रखा गया था।
डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत कैसे तय होती है?
किसी भी देश की करेंसी की कीमत अर्थव्यवस्था के बेसिक सिद्धांत, डिमांड और सप्लाई पर आधारित होती है. फॉरेन एक्सचेंज मार्केट में जिस करेंसी की डिमांड ज्यादा होगी उसकी कीमत भी ज्यादा होगी, जिस करेंसी की डिमांड कम होगी उसकी कीमत भी कम होगी. यह पूरी तरह से ऑटोमेटेड है. सरकारें करेंसी के रेट को सीधे प्रभावित नहीं कर सकती हैं.
करेंसी की कीमत को तय करने का दूसरा एक तरीका भी है. जिसे Pegged Exchange Rate कहते हैं यानी फिक्स्ड एक्सचेंज रेट. जिसमें एक देश की सरकार किसी दूसरे डॉलर की कीमत रुपये के मुकाबले क्यों बढ़ रही है? देश के मुकाबले अपने देश की करेंसी की कीमत को फिक्स कर देती है. यह आम तौर पर व्यापार बढ़ाने औैर महंगाई को नियंत्रित करने के लिए किया जाता है.
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उदाहरण के तौर पर नेपाल ने भारत के साथ फिक्सड पेग एक्सचेंज रेट अपनाया है. इसलिए एक भारतीय रुपये की कीमत नेपाल में 1.6 नेपाली रुपये होती है. नेपाल के अलावा मिडिल ईस्ट के कई देशों ने भी फिक्स्ड एक्सचेंज रेट अपनाया है.
डॉलर दुनिया की सबसे बड़ी करेंसी है. दुनियाभर में सबसे ज्यादा कारोबार डॉलर में ही होता है. हम जो सामान विदेश से मंगवाते हैं उसके बदले हमें डॉलर देना पड़ता है और जब हम बेचते हैं तो हमें डॉलर मिलता है. अभी जो हालात हैं उसमें हम इम्पोर्ट ज्यादा कर रहे हैं और एक्सपोर्ट कम कर रहे हैं. जिसकी वजह से हम ज्यादा डॉलर दूसरे देशों को दे रहे हैं और हमें कम डॉलर मिल रहा है. आसान भाषा में कहें तो दुनिया को हम सामान कम बेच रहे हैं और खरीद ज्यादा रहे हैं.
Rupee Against Dollar: डॉलर के मुकाबले रुपये में बढ़ रही है कमजोरी, ज्यादा रिटर्न के लिए कैसे तैयार करें पोर्टफोलियो
डॉलर के मुकाबले रुपये के कमजोर होने से भारतीय निवेशकों को अपने पोर्टफोलियो रिटर्न को बढ़ाने में मदद मिलती है.
Rupee Against Dollar: अमेरिकी डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपये में गिरावट आज भी जारी रही. शुरूआती कारोबार बाजार में डॉलर के मुकाबले में रुपया 82.66 रुपये प्रति डॉलर के स्तर पर पहुंच गया. एक्सपर्ट्स की माने तो ग्लोबल मार्केट में जारी अनिश्चितता की वजह डॉलर के मुकाबले भारतीय मुद्रा में आगे भी गिरावट जारी रह सकती है. ऐसे में उम्मीद जताई जा रही है कि अगले कुछ दिनों में रुपया 83.50 के स्तर तक गिर सकता है. इस अनिश्चितता का असर न सिर्फ भारतीय करेंसी पर हो रहा, बल्कि दुनिया भर के देश इससे प्रभावित हो रहे हैं.
अब तक के न्यूनतम स्तर पर पहुंचा रुपया
इससे पहले सोमवार को रुपया 82.40 रुपये प्रति डॉलर के स्तर पर पहुंच गया था. गिरावट का यह दौर इस साल जनवरी 2022 से जारी है. डॉलर लगातार रुपये के मुकाबले मजबूत हो रहा है और आने वाले दिनों में भी ऐसा ही जारी रह सकता है. रुपये को कमजोर होने से बचाने के लिए आरबीआई द्वारा विदेशी मुद्रा भंडार में पिछले 2 सालों से कमी की जा रही है. इस साल अब तक विदेशी मुद्रा भंडार में 11 फीसदी से ज्यादा की गिरावट दर्ज की गई है.
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यूएस फेड की सख्त आर्थिक नीतियो का असर
डॉलर में मजबूती के पीछे यूएस फेड अपनाई गए सख्त आर्थिक नीति को माना जा सकता है. इसके साथ ही अमेरिकी में जॉब की बढ़ती संख्या भी इसकी एक बड़ी वजह हो सकती डॉलर की कीमत रुपये के मुकाबले क्यों बढ़ रही है? है. फेडरल रिजर्व द्वारा ब्याज दरों में अभी और भी इजाफा किये जाने की उम्मीद है. डॉलर के मुकाबले रुपये में मजबूती आने में अभी थोड़ा वक्त लग सकता है. ऐसे में अगर आप अपने बच्चों को किसी विदेशी स्कूल में भेजने के बारे में सोच रहे हैं, तो आप अमेरिकी शेयरों में निवेश करने या विदेशी बैंक खाते में पैसा रखने के बारे में सोच सकते हैं. विदेशों में भेजे गए पैसो पर RBI द्वारा Liberalized Remittance Scheme अपनाई जाती है. इस नीति के तहत नाबालिगों सहित सभी निवासियों को किसी भी वैध चालू या पूंजी खाता लेनदेन या दोनों के संयोजन के लिए हर फाइनेंशियल ईयर में 2,50,000 अमेरिकी डॉलर तक टैक्स फ्री ट्रांजेक्शन की परमिशन दी गई है.
मांग में कमी के लिए इंट्रेस्ट रेट में बढ़ोतरी
महंगाई को काबू में लाने के लिए फेडरल रिजर्व, बैंक ऑफ इंग्लैंड, यूरोपियन सेंट्रल बैंक समेत दुनिया के सभी सेंट्रल बैंक इंट्रेस्ट रेट में भारी बढ़ोतरी कर रहे हैं जिससे मांग में कमी आए. इंट्रेस्ट रेट में बढ़ोतरी के कारण फिक्स्ड इनकम के प्रति आकर्षण बढ़ा और शेयर बाजार के प्रति आकर्षण घटा है. इसलिए दुनियाभर के शेयर बाजार में गिरावट है और बॉन्ड यील्ड उछल रहा है.
महंगाई बढ़ने से करेंसी की खरीद क्षमता घट जाती है. डॉलर के मुकाबले दुनिया की तमाम करेंसी में गिरावट आई है. जब कोई सेंट्रल बैंक इंट्रेस्ट रेट बढ़ाता है जो इसका मतलब होता है कि वहां की इकोनॉमी मजबूत स्थिति में है. इकोनॉमी को लेकर मजबूती के संकेत मिलने पर उस देश की करेंसी भी मजबूत हो जाती है. एक्सपर्ट का कहना है कि डॉलर का प्रदर्शन ज्यादा मजबूत दिख रहा है, क्योंकि कोरोना के बाद दुनिया की तमाम इकोनॉमी की हालत तो खराब है ही और उनकी करेंसी की वैल्यु भी घटी है. इसके कारण डॉलर को डबल मजबूती डॉलर की कीमत रुपये के मुकाबले क्यों बढ़ रही है? मिल रही है.
भारतीय अर्थव्यवस्था पर क्या होगा असर?
रुपये के कमजोर होने का सबसे बड़ा असर मुद्रास्फीति पर पड़ता है, क्योंकि भारत अपने कच्चे तेल का 80% से अधिक आयात करता है, जो भारत का सबसे बड़ा आयात है.
तेल दो महीने से अधिक समय से 100 डॉलर प्रति बैरल के आसपास मंडरा रहा है और कमजोर रुपये से मुद्रास्फीति के दबाव में इजाफा होगा. भारत उर्वरकों और खाद्य तेलों के लिए भी अन्य देशों पर बहुत अधिक निर्भर है. क्रिसिल के अनुसार, देश का उर्वरक सब्सिडी बिल इस वित्त वर्ष में 1.9 ट्रिलियन रुपये के रिकॉर्ड उच्च स्तर पर पहुंचने के डॉलर की कीमत रुपये के मुकाबले क्यों बढ़ रही है? लिए तैयार है.
कमजोर रुपया जहां आयात को महंगा बनाता है, वहीं इसके कुछ फायदे भी हैं. यह हमारे निर्यातकों को सैद्धांतिक रूप से अधिक प्रतिस्पर्धी बनाता है.
भारत के प्रमुख निर्यात आइटम जैसे रत्न और आभूषण, पेट्रोलियम उत्पाद, डॉलर की कीमत रुपये के मुकाबले क्यों बढ़ रही है? जैविक रसायन और ऑटोमोबाइल, और मशीनरी आइटम में आयात की मात्रा काफी अधिक है. आपूर्ति की कमी के कारण कमोडिटी की कीमतों में बढ़ोतरी के साथ, निर्यातकों के लिए उत्पादन की लागत बढ़ जाएगी, जिससे उनके मार्जिन पर असर पड़ेगा.
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