वहीं, नेशनल स्टॉक एक्सचेंज का 50 शेयरों पर आधारित संवेदी सूचकांक निफ्टी 16.65 अंकों की गिरावट के साथ 8,445.70 पर खुला।
मुद्रास्फीति एवं अपस्फीति (Inflation and Deflation)
मुद्रास्फीति एवं अपस्फीति (Inflation and Deflation) किसे कहते हैं, मुद्रास्फीति के लाभ, मुद्रास्फीति के परिणाम, मुद्रास्फीति के कारण, मुद्रास्फीति के प्रकार, मुद्रा संकुचन क्या है, आदि प्रश्नों के उत्तर यहाँ दिए गए हैं। Inflation and Deflation UPSC notes in Hindi.
अर्थव्यवस्था में मांग एवं पूर्ति की तीन स्थितियों में से कोई एक सदा बनी रहती हैं। इन्हीं तीनों दशाओं या स्थितियों के आधार पर अर्थव्यवस्था में मुद्रास्फीति और अपस्फीति की स्थिति उत्पन्न होती है। आइये अर्थव्यवस्था की इन तीनों स्थितियों का अध्ययन करें-
- मांग = पूर्ति – ये एक आदर्श स्थिति है जिसे किसी भी अर्थव्यवस्था में प्राप्त करना संभव नहीं है।
- मांग > पूर्ति – मुद्रास्फीती (Inflation)
- मांग < पूर्ति– अपस्फीति या मुद्रा संकुचन (Deflation)
मुद्रास्फीति (Inflation)
जिस समय अर्थव्यवस्था मुद्रा अवमूल्यन का प्रभाव में वस्तु एवं सेवा की तुलना में मुद्रा की मात्रा अधिक होती है उस समय मुद्रास्फीति की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। अर्थव्यवस्था में मुद्रा की मात्रा अधिक होने के कारण मांग बढ़ती है (मांग > पूर्ति)। वस्तु एवं सेवा की मात्रा कम होने से उनकी कीमत भी बढ़ जाती है जिससे अर्थव्यवस्था में मुद्रा की मात्रा तो ज्यादा होती है परन्तु मुद्रा अवमूल्यन का प्रभाव उसका मुल्य कम हो जाता है।
उदाहरण के लिए यदि सामान्य स्थिति में कोई वस्तु 100रू0 में बाजार में उपलब्ध थी, तो मुद्रास्फीति होने पर वही वस्तु 200रू0 की हो जाएगी क्योंकि अब मुद्रा की कीमत (मूल्य) कम हो चुकी है।
मुद्रास्फीति को आसान शब्दों में महँगाई के रूप में भी जाना जाता मुद्रा अवमूल्यन का प्रभाव है।
परिभाषा- जब किसी अर्थव्यवस्था में वस्तुओं और सेवाओं की तुलना में मुद्रा की आपूर्ति अधिक हो जाती है तो इस स्थिति को मुद्रा स्फीति कहते हैं।
मुद्रा संकुचन या मुद्रा अपस्फीति (Deflation)
जब अर्थव्यवस्था में मुद्रा की मात्रा में कमी एवं वस्तु और सेवा की मात्रा में बढ़ोतरी होती है तो मुद्रा अवमूल्यन का प्रभाव इस स्थिति को मुद्रा अपस्फीति कहा जाता है। मुद्रा की मात्रा कम होने से मांग में कमी आती है, परन्तु वस्तु और सेवाओं की मात्रा अधिक होने के कारण उनकी कीमतें गिर जाती हैं।
वस्तु और सेवा की मात्रा अधिक होने से उनका मूल्य कम हो जाता है। साथ ही मुद्रा की मात्रा कम होने से उसका मूल्य अधिक हो जाता है।
अर्थव्यवस्था में पहले से ही वस्तु और सेवाओं की अधिकता होने से उत्पादन में कमी आती है, जिससे रोजगार कम होते है जिससे उपभोक्ता की आय समाप्त हो जाती है और क्रय शक्ति घटती है। चीजें सस्ती होने पर भी नहीं बिकती जिसे आर्थिक मंदी भी कहते हैं।
आर्थिक मंदी, मुद्रास्फीति से ज्यादा भयानक होती है क्योंकि इससे चीजें जितनी सस्ती होती हैं। उतनी ही क्रय शक्ति घटती जाती है। क्रयशक्ति घटने से बाजार में तरलता भी कम हो जाती है, जिससे उत्पादन भी कम हो जाता है और पुनः मंदी आती है। यह एक चक्रीय क्रम में चलती रहती है।
गंभीर आर्थिक कठिनाइयाँ
हम समझते हैं कि COVID-19 कोरोनावायरस ने आपके वित्त पर एक महत्वपूर्ण प्रभाव डाला हो सकता है जो आपके नियंत्रण से परे हैं। इस वजह से, बीईआई में पात्र एफ -1 छात्र एफ -1 छात्रों के लिए गंभीर आर्थिक कठिनाई रोजगार के लिए आवेदन कर सकते हैं।
एक योग्य F-1 छात्र, छात्र के नियंत्रण से परे अप्रत्याशित परिस्थितियों के कारण गंभीर आर्थिक कठिनाई के आधार पर रोजगार प्राधिकरण का अनुरोध कर सकता है। इन परिस्थितियों में छात्र की ओर से गलती के बिना वित्तीय सहायता या ऑन-कैंपस रोजगार का नुकसान हो सकता है, मुद्रा अवमूल्यन का प्रभाव मुद्रा या विनिमय दर के मूल्य में पर्याप्त उतार-चढ़ाव, ट्यूशन और / या रहने की लागत में वृद्धि, या वित्तीय में अप्रत्याशित परिवर्तन। छात्र के समर्थन के स्रोत, चिकित्सा बिल या अन्य पर्याप्त और अप्रत्याशित खर्चों की स्थिति।
स्रोत: [8 सीएफआर 214.2 (एफ) (9) (ii) (सी) - (डी) और (एफ)]
युआन की वैल्यू घटने का असर रुपये पर पड़ा, दो साल निचले स्तर पर पहुंचा
दो दिन में चीनी मुद्रा युआन में 4 प्रतिशत के अवमूल्यन से डॉलर की तुलना में रुपया बुधवार को 1 प्रतिशत गिरकर 64.85 डॉलर पर कारोबार कर रहा है। रुपये का यह दो साल का निचला स्तर है। इस तरह की गिरावट पिछले साल सितंबर 2013 में देखने को मिली थी, जब देश करंट अकाउंट घाटा से जूझ रहा था।
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अर्थव्यवस्था की गिरती विकास दर और मुद्रा अवस्फिति का दबाव झेल रहे चीन ने मुद्रा अवमूल्यन का प्रभाव कमजोर आर्थिक आँकड़े आने के बाद आज अपनी मुद्रा यूआन का अवमूल्यन कर दिया जिसका असर रुपये और भारतीय शेयर बाजारों पर भी देखने को मिला। चीन के केंद्रीय बैंक ने बताया कि उसने यूआन का लगभग दो प्रतिशत अवमूल्यन किया है।
फेडरल बैंक के एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर आशुतोष खजुरिया ने बताया कि युआन के अवमूल्यन का प्रभाव रुपया समेत सभी विकासशील देशों की मुदाओं पर पड़ा। जिनका चीन से ज्यादा लेन-देन है, उन देशों की मुद्राओं पर इसका खासा असर देखने को मिलेगा।
इसका असर शेयर बाजारों पर भी देखने को मिल रहा है। देश के प्रमुख शेयर बाजारों में बुधवार को शुरुआती कारोबार में गिरावट का रुख रहा।
प्रमुख सूचकांक सेंसेक्स सुबह लगभग 9.48 बजे 205.55 अंकों की गिरावट के साथ 27,660.54 पर और निफ्टी भी लगभग इसी समय 70.50 अंकों की गिरावट के साथ 8,391.85 पर कारोबार करते देखे गए।
मूल्यह्रास के नकारात्मक प्रभाव?
- अगर आज रुपये का अवमूल्यन होता है, तो हो सकता है कि फौरी तौर पर एक्सपोर्ट बढ़ जाए, लेकिन कमजोर रुपया दूसरी मुश्किलें खड़ी करेगा. मसलन जिन कंपनियों ने विदेशों से कर्ज ले रखा है, उनके लिए ब्याज के खर्चे काफी बढ़ जाएंगे. साथ ही देश में होने वाला इंपोर्ट महंगा हो जाएगा.
- कच्चे तेल को भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास और अपनी अधिक उपयोग के साथ काम करने के लिए एक विशाल साधन कहा जा सकता है। चूँकि भारत अपनी 80% से अधिक तेल की जरूरतों का आयात करता है, इसलिए रुपया का मूल्यह्रास हमारे भारी तेल आयात की लागत में वृद्धि करेगा। बदले में यह हमारे चालू खाते में घाटे का कारण बन सकता है।
- ऐसे में सरकार के लिए घरेलू मोर्चे पर महंगाई को काबू में करना मुश्किल हो जाएगा. और एक बार महंगाई बढ़ी, तो ब्याज दरों में कमी का सिलसिला रुक जाएगा. इसका बुरा असर देश में घरेलू निवेश और कंपनी की विस्तार योजनाओं पर पड़ेगा.
- आयात लागत में वृद्धि और भी बुरे प्रकार से भारतीय कॉर्पोरेट बाजार को सीधे प्रभावित करेगी।
- बढ़ती मुद्रास्फीति (महंगाई) को रोकने के लिए, देश के केंद्रीय बैंक आम तौर पर ब्याज दरों मुद्रा अवमूल्यन का प्रभाव में वृद्धि करते हैं। इसके परिणामस्वरूप लोग कम पैसे उधार लेने में सक्षम हैं, और इसलिए, मुद्रास्फीति को ध्यान में रखते हुए, वह अपने खर्चे के लिए भी कम खर्च करते हैं। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) भी ब्याज दरों में वृद्धि का सहारा ले सकते हैं और कॉर्पोरेटों पर अपना प्रभाव बढ़ा सकते हैं
पिछले कुछ दिनों से रुपया लगातार गिर रहा है. माना जा रहा है कि रुपया 1967 में अपनी निम्नतम बिंदू से भी नीचे जा सकता है. . अधिक पढ़ें
- News18 हिंदी
- Last Updated : May 11, 2018, 15:40 IST
भारतीय रुपया लगातार कमजोर हो रहा है. वर्ष 1967 के बाद रुपया इतना कमजोर कभी नहीं रहा, जैसा आज है. रुपए की कीमत डॉलर मुद्रा अवमूल्यन का प्रभाव के मुकाबले 66.76 पैसे आंकी गई है. क्या इसका कमजोर होना हमारी जेब के बोझ पर और असर डालेगा. या ये कुछ लोगों के लिए फायदेमंद भी होगा.
किस वजह से रुपया कमजोर हो रहा है
- यूं तो इसके संकेत कई वजहों से वर्ष 2018 की शुरुआत से ही मिलने लगे थे. करेंसी कई कारकों से दबाव में थी लेकिन हाल ही में कच्चे तेल के दामों में बढोतरी ने रुपये का हाल बेहाल कर दिया है. इससे हमारी अर्थव्यवस्था पर निःसंदेह असर पड़ेगा. सामान महंगे होंगे. खासकर इलैक्ट्रॉनिक्स, दवाएं, मकान बनाना, आभूषण और विदेश में पढाई लिखाई या सैरसपाटा.
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